भारत में अल्पपोषित बच्चों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है और यहां मिड-डे मील (एमडीएम) के रूप में स्कूली भोजन की सबसे बड़ी योजना जारी है परंतु इस योजना के अंतर-पीढ़ीगत प्रभाव पर सीमित साक्ष्य उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़ों के आधार पर, यह लेख दिखाता है कि अगर स्कूली शिक्षा के दौरान एक माँ एमडीएम की लाभार्थी थी, तो उसके बच्चों की लम्बाई की कमी में 20-30% की गिरावट आती है।
कोविड-19 के फैलाव को कम करने के लिए अप्रैल 2020 तक 170 देशों के स्कूलों को बंद कर दिया गया था। भारत में 24.7 करोड़ बच्चे एक साल से अधिक समय से स्कूलों में नहीं आ पा रहे हैं। स्कूल बंद होने से पढ़ाई पर पड़ने वाले विनाशकारी परिणामों के अलावा, स्वास्थ्य विशेषज्ञ उन कमजोर भारतीय बच्चों के बारे में विशेष रूप से चिंतित हैं जो स्कूल में मुफ्त मिलने वाले दोपहर के भोजन से वंचित हो रहे हैं।
स्कूली भोजन संबंधी योजनाएं
आज, दुनिया में सबसे अधिक अल्पपोषित बच्चे भारत में हैं और यहां सबसे बड़ी स्कूली भोजन योजना मिड-डे मील (एमडीएम) योजना1 जारी है।
अल्पपोषण, और विशेष रूप से ठिगनापन (अर्थात, आयु की तुलना में लम्बाई का कम होना), जीवन के शुरुआती दिनों में उप-अनुकूलतम स्थितियों का एक संकेत है और साथ ही इसका संबंध खराब जीवन परिणामों से भी है जैसे कि उत्पादकता एवं कमाई का कम होना और चिरकालिक बीमारियों का अधिक होना (लेरॉय और फ्रोंगिलो 2019)। कई अध्ययनों से पता चला है कि स्कूल में बच्चों को मुफ्त भोजन प्रदान करने वाले कार्यक्रम न केवल उनकी भूख को शांत कर सकते हैं, बल्कि साथ ही साथ उनकी शिक्षा और दीर्घकालिक कल्याण में भी सहायक हो सकते हैं (चक्रवर्ती और जयरामन 2016, सिंह एवं अन्य 2014)। स्कूली भोजन लड़कियों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, क्योंकि यह उन्हें अधिक समय तक स्कूली शिक्षा लेने के लिए प्रोत्साहित करता है, उनके विवाह को आगे टालता है और किशोर अवस्था में उनके गर्भधारण की संभावना को कम करता है, जबकि ये सभी दुर्भाग्य से, दक्षिण एशिया में अभी भी आम हैं और लड़कियों और उनके बच्चों के पोषण पर नकारात्मक रूप से परिणामकारी हैं(अफरीदी 2011, स्कॉट एवं अन्य 2020, गुयेन एवं अन्य 2019)।
लेकिन अभी भी इस बारे में ज्ञात नहीं है कि क्या स्कूली भोजन कार्यक्रमों के पोषण संबंधी लाभ अगली पीढ़ी तक जाते हैं या नहीं।
भारत की मिड-डे मील योजना का अंतर-पीढ़ीगत प्रभाव
भारत की एमडीएम योजना 1995 में शुरू की गई थी, और इस प्रकार से अब तक इसके शुरुआती लाभार्थी बच्चे पैदा करने की आयु के हो गए हैं। हम कल्पना करते हैं कि जिन महिलाओं को अपने बचपन में प्राथमिक विद्यालय में मुफ्त भोजन मिलता था, वे वयस्क होने पर बेहतर पोषित और अधिक शिक्षित हुई होंगी, और इसके परिणामस्वरूप उनके बच्चों की लंबाई बेहतर होगी। इस परिकल्पना को जांचने के लिए, हम राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण - उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (एनएसएस-सीईएस 1993, 1999, 2005) से एमडीएम कवरेज डेटा और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4, 2016) (चक्रवर्ती एवं अन्य 2021) से प्राप्त बाल विकास डेटा का उपयोग करते हैं। हम ऐतिहासिक एमडीएम कवरेज और वर्तमान में बच्चों के ठिगनेपन के बीच संबंधों की जांच करते हैं, और उन संभावित मार्गों का पता लगाते हैं जिनके माध्यम से स्कूल में मुफ्त भोजन प्राप्त करने से भविष्य के बाल विकास में लाभ हो सकता है।
पहली नज़र हमारी प्रारंभिक परिकल्पना का समर्थन करती हुई प्रतीत होती है: 2016 में ठिगनेपन की व्यापकता उन राज्यों में कम है जहां 2005 में अधिक लड़कियों को स्कूल में मुफ्त भोजन मिला था (आकृति 1)।
आकृति 1. ठिगनेपन की व्यापकता और मिड-डे मील योजना का राज्य स्तरीय कवरेज
स्रोत: ठिगनेपन संबंधी डेटा के लिए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-4 (2016), और राज्य स्तरीय एमडीएम कवरेज डेटा के लिए 61वां राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (2005)।
नोट: (i) आंकड़ा 2016 में पांच साल से कम आयु के बच्चों में ठिगनेपन की व्यापकता, और 2005 में 6-10 साल के आयु वर्ग की लड़कियों के बीच एमडीएम कवरेज के बीच संबंध को दर्शाता है। (ii) प्रत्येक गोला भारत में एक अलग राज्य का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें गोले का आकार राज्य की जनसंख्या के आकार का प्रतिनिधित्व करता है। (iii) फिट लाइन और छायांकित भाग 95% विश्वास अंतराल को भी राज्य की जनसंख्या के आकार से भारित गया है। (विश्वास अंतराल अनुमानित प्रभावों के बारे में अनिश्चितता व्यक्त करने का एक तरीका है। 95% विश्वास अंतराल का अर्थ है कि यदि आप नए नमूनों के साथ प्रयोग को बार-बार दोहराते हैं, तो गणना किए गए विश्वास अंतराल में वही प्रभाव निहित होगा)
हमारे अनुभवजन्य विश्लेषण से पता चलता है कि स्कूल में एमडीएम और अगली पीढ़ी के बीच ठिगनेपन की व्यापकता में देखा गया यह संबंध, कठोर सांख्यिकीय मॉडल के साथ परीक्षण किए जाने पर बना रहता है। हमारे तीन प्रमुख निष्कर्ष हैं: पहला, झुकावों के कारकों2 को नियंत्रित करने वाले हमारे सांख्यिकीय मॉडल यह दिखाते हैं कि अगर एक मां स्कूली शिक्षा के दौरान एमडीएम की लाभार्थी थी, तो उसके बच्चों की लम्बाई की कमी में 20-30% की गिरावट आती है। इसका प्रभाव गरीब परिवारों में अधिक होता है। दूसरा, इन प्रभावों को परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए, हमारे मॉडल का अनुमान है कि 2006 से 2016 तक HAZ (आयु-के लिए ऊंचाई z स्कोर3) में 29% सुधार एमडीएम की वजह से है। तीसरा, इन निष्कर्षों को योजना के मार्ग विश्लेषण4 द्वारा समर्थित किया गया है जिसमें दिखाया गया है कि एमडीएम लाभार्थी अधिक वर्षों तक शिक्षा प्राप्त करते हैं, लंबे होते हैं, बच्चों को उचित समय पर जन्म देते हैं और उनके कम बच्चे होते हैं, तथा गैर-लाभार्थियों की तुलना में उनके द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग करने की अधिक संभावना होती है।
ये निष्कर्ष इस बात का प्रमाण देते हैं कि, जब अंतर-पीढ़ीगत प्रभावों पर विचार किया जाता है, तो पोषण के संबंध में स्कूली भोजन कार्यक्रमों का पूरा लाभ पहले समझे गए लाभ की तुलना में बहुत बड़ा है। स्कूली भोजन कार्यक्रम आबादी के एक बड़े हिस्से में पूर्व-किशोरावस्था और किशोरावस्था, जो कि उच्च पोषण संबंधी जरूरतों5 की अवधि है, के दौरान अल्पपोषण के कई मूलभूत कारकों को हल कर सकते हैं।
नीतिगत प्रभाव
इस तरह के कार्यक्रमों को मिडिल स्कूल और उसके परे विस्तारित करके, और प्रदान किए जाने वाले भोजन की मात्रा या गुणवत्ता में सुधार कर उनके लाभों को और बढाया जा सकता है। कार्यक्रम के विस्तार में वित्तीय निहितार्थ काफी अधिक हैं, लेकिन इसके बहु-पीढ़ीगत लाभ लागतों की तुलना में काफी अधिक होने की संभावना है, क्योंकि शिक्षा और पोषण सुधार दोनों ही सामाजिक जरूरतें हैं। भारत में स्कूली भोजन में सुधार के लिए कई रोमांचक कदम उठाए जा रहे हैं जिनमें शामिल हैं - स्कूल के बगीचे, नाश्ता, अंडे का प्रावधान, प्रमुख आहार को सूक्ष्मपोषक तत्वों के स्तर पर सुदृढ़ करना, और पोषण एवं स्वच्छता शिक्षा को शामिल करना। इन कदमों के प्रभाव और इनके सापेक्ष लाभ के साक्ष्य सीमित हैं, तथा इस संबंध में अधिक मूल्यांकन किए जाने की आवश्यकता है, लेकिन स्कूली भोजन के प्रभाव को गहरा और विस्तारित करने के लिए किए जा रहे ऐसे प्रयासों का, उनके व्यापक सकारात्मक प्रभावों को देखते हुए आम तौर पर स्वागत किया जाना चाहिए। एक ऐसा अध्ययन विषय जो कार्यक्रम कवरेज के विस्तार और भोजन की गुणवत्ता में सुधार के कई योगदानों की पड़ताल करता है, प्रभाव और लागत प्रभावशीलता सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है। स्कूलों के फिर से खुलने तथा चूंकि भारत यह सुनिश्चित करना चाहता है कि लाखों स्कूली आयु वर्ग के बच्चों को वह पोषण मिलता रहे जिसकी उन्हें स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने के लिए आवश्यकता है, इस अध्ययन विषय का सह-निर्माण करने के लिए हितधारकों को एक साथ लाना महत्वपूर्ण है।
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टिप्पणियां:
- केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में 1995 में शुरू की गई मिड-डे मील (एमडीएम) योजना के अंतर्गत सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों (बाद में स्कूलों के अधिक समूहों को कवर करने के लिए विस्तारित) में बच्चों को पौष्टिक, तैयार मध्याह्न भोजन प्रदान किया जाता है। इस योजना का उद्देश्य कक्षा एक से आठ तक पढ़ने वाले बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार करना और वंचित वर्गों के बच्चों को नियमित रूप से स्कूल जाने और स्कूल की गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
- वे सांख्यिकीय मॉडल जिनका उपयोग हम बच्चे की आयु, लिंग, जन्म-क्रम, निवास का क्षेत्र, धर्म, जाति, एकीकृत बाल विकास सेवाओं और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की सेवाओं तक पहुंच की जांच करने के लिए करते हैं। इन मॉडलों में मां के जन्म वर्ष, राज्य, घरेलू संपत्ति, तथा राज्य एवं मां के जन्म वर्ष के आपसी संबंध के लिए 'निश्चित प्रभाव' शामिल हैं। निश्चित प्रभाव समय-अपरिवर्तनीय गैर-अवलोकित व्यक्तिगत विशेषताओं की जांच करते हैं।
- z स्कोर मानव शरीर के नाप से संबंधित कई मानों जैसे लम्बाई या वजन को संदर्भ आबादी के औसत मूल्य से नीचे या ऊपर कई मानक विचलन के रूप में व्यक्त करता है। (मानक विचलन एक माप है जिसका उपयोग उस सेट के औसत से मूल्यों के एक सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है।)
- पूर्ण एमडीएम कवरेज के द्वारा यह पूर्वानुमान लगाया जाता है कि माता द्वारा 3.9 वर्ष शिक्षा अर्जित की गई है, पहले जन्म के समय आयु में 1.6 वर्ष की देरी होती है, कम (-0.8) बच्चे होने की संभावना है, प्रसव-पूर्व देखभाल के लिए कम से कम चार विजिट की संभावना अधिक (22%) है, और चिकित्सा सुविधा में बच्चे को जन्म देने की उच्च संभावना (28%) है।
- मासिक धर्म की शुरुआत में लड़कियों के लिए यह विशेष रूप से सच होगा।
लेखक परिचय : हेरोल्ड एल्डरमैन IFPRI (अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान) में एक वरिष्ठ अनुसंधान फेलो हैं। सुमन चक्रवर्ती युनिवर्सिटी औफ वाशिंगटन में प्रीडॉक्टोरल रिसर्च एसोसिएट हैं| डेनियल गिलिगन IFPRI (अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान) गरीबी, स्वास्थ्य और पोषण प्रभाग में उप प्रभाग निदेशक हैं। पूर्णिमा मेनन अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान में एक वरिष्ठ अनुसंधान फेलो हैं। सैमुअल स्कॉट IFPRI (अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान) गरीबी स्वास्थ्य और पोषण प्रभाग में एक रिसर्च फेलो हैं।
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