इबोला वायरस रोग से सबक के बावजूद, दुनिया ने अभी तक भरोसेमंद, समुदाय से जुड़े हुए लोक-स्वास्थ्यकर्मियों के संवर्ग में निवेश नहीं किया है जो अपने कार्यों को पेशेवरों के रूप में करने में सशक्त होते हैं। यह लेख बिहार में लोक स्वास्थ्यकर्मियों के एक सर्वेक्षण से अभिनव साक्ष्य प्रदान करता है जिसका तुरंत प्रयोग लोक स्वास्थ्यकर्मियों के साथ एक ऐसे नए प्रकार के अनुबंध को डिजाइन करने के लिए किया जा सकता है जो नौकरी सुरक्षा, नियमित मजदूरी और पेशेवर मानदंडों में विश्वास पर आधारित हो।
रोग के प्रकोप की निगरानी, उसकी रोकथाम और प्रबंधन करने में सक्षम होने के लिए, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को भरोसेमंद, समुदाय से जुड़े हुए लोक-स्वास्थ्यकर्मियों की आवश्यकता होती है, जो अपने कार्यों को पेशेवरों के रूप में करने के लिए सशक्त हों। इबोला वायरस रोग से सबक के बावजूद, दुनिया ने स्वास्थ्यकर्मियों के इस संवर्ग में निवेश नहीं किया है। हाल के शोध (खेमानी एवं अन्य 2020) में, भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक बिहार में, नवंबर 2018 से मार्च 2019 के बीच एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए मैंने व मेरे सह लेखकों ने पाया कि वहां एक ओर सामुदायिक स्वास्थ्यकर्मियों को वेतन नहीं मिल रहा है और दूसरी ओर उनका प्रबंधन संदेह या अविश्वास के साथ किया जा रहा है। आज, वे ही स्वास्थ्यकर्मी कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई के मोर्चे पर सबसे आगे हैं जिन्हें न तो पर्याप्त वेतन मिलता है और न ही उन पर भरोसा किया जाता है। यह शोध दिखाता है कि कैसे आर्थिक सिद्धांत का प्रयोग करके नौकरी सुरक्षा, नियमित मजदूरी और पेशेवर मानदंडों में विश्वास के आधार पर लोक स्वास्थ्यकर्मियों के साथ एक नए प्रकार के अनुबंध को डिजाइन किया जा सकता है। स्थानीय राजनीतिक संस्थानों के अनुरूप, रणनीतिक संचार, इस तरह के अनुबंधों के संचालन में एक आवश्यक पूरक की भूमिका निभाता है। वर्तमान महामारी का प्रबंधन और भविष्य में इसके प्रकोप को रोकने के लिए भ्रामक नीति निर्माताओं वाले राजनीतिक संस्थानों की तकनीकी स्वास्थ्य नीतियों से परे जाने की आवश्यकता है। इन विचारों को तुरंत बिहार में उपयोग और परीक्षण के लिए लिया जा सकता है, जहां सर्वेक्षण ने प्रसंगाधीन विवरणों को उजागर किया है और जहां कोविड-19 के साथ इस तरह के निवेश की आवश्यकता तेजी से बढ़ी है। ऐसा करके, भारत दुनिया को दिखा सकता है कि उन सार्वजनिक संस्थानों का निर्माण कैसे किया जाए जो 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्वयक हैं।
समुदाय से जुड़े हुए स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ अनुबंध
भारत जैसे विकासशील देशों ने गरीब परिवारों तक पहुंचने सहित विभिन्न स्वास्थ्य कार्यों के लिए सामुदायिक स्वास्थ्यकर्मियों के साथ स्वैच्छिक या अर्ध-स्वैच्छिक अनुबंधों का उपयोग किया है, ताकि निवारक एवं प्रोत्साहक स्वास्थ्य व्यवहारों संबंधी कार्यों को पूरी गंभीरता से किया जा सके (लेहमैन एवं सैंडर्स 2007)। कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में इन स्वास्थ्यकर्मियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, और मीडिया में प्रकाशित लेखों में उन्हें बेहतर पारिश्रमिक देने, प्रशिक्षित करने और उपकरणों आदि से सुसज्जित करने की बात कही गई है। कोविड-19 के काफी पहले से, लोक स्वास्थ्यकर्मी नियमित वेतन के लिए आंदोलन कर रहे हैं, और यह शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उचित सम्मान नहीं मिलता है।
भारत में अभी तक ऐसा कोई उदाहरण नहीं है जहां किसी नेता ने लोक स्वास्थ्यकर्मियों को नियमित वेतन देने और उनका संवर्ग बनाने के लिए कोई नीतिगत निर्णय लिया हो। इस तरह की नीति बनाने से सार्वजनिक वेतनसूची पर कर्मचारियों का एक नया वर्ग बन जाएगा जिसके लिए बड़ी मात्रा में राजकोषीय संसाधनों को खर्च करने आवश्यकता होगी, और इस प्रकार यह नीति अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों (रिकार्ड एवं कैरावे 2019) द्वारा सुझाए गए विशिष्ट सार्वजनिक क्षेत्र के सुधारों के विपरीत चलेगी। यह एक बड़ी दुविधा है कि इबोला और कोविड-19 संकट द्वारा सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों के रूप में सेवा करने के लिए समुदाय से जुडे हुए स्वास्थ्यकर्मियों के साथ अनुबंध को नियमित वेतन वाले अनुबंध में बदलने की आवश्यकता महसूस कराई है, लेकिन नीति-निर्माताओं को इस बात की चिंता है कि इस वेतन पर किए जाने वाले सार्वजनिक खर्च का पर्याप्त प्रतिफल नहीं मिलेगा या नहीं। सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार के खिलाफ आम तर्कों के अलावा, भारत में नीति-निर्माताओं को इस बात की भी चिंता होती है कि यहां ’तंत्र’ इस प्रकार का है कि यदि एक बार श्रमिकों को ’स्थायी’ वेतनसूची पर रख लिया जाता है, तो वे पूरे परिश्रम से अपना कार्य नहीं करेंगे। सियरा, ब्राज़ील राज्य के सुधारवादी विचारकों ने 1980 के दशक में इसी तरह की समस्या का सामना किया था और इसे स्थानीय संरक्षण राजनीति तंत्र के आमने-सामने ला कर (टेंडलर एवं फ्रीडाइम 1994) हल किया।
हम अपने शोध में दिखाते हैं कि बिहार के मामले में स्वास्थ्यकर्मियों के लिए नए अनुबंध के कितने आवश्यक हैं, और ग्राम-स्तर की पंचायत राजनीति की शक्तियां इन अनुबंधों और प्रणाली को विकास के विरोधी के बजाय विकास के लिए कार्यरत कराने में किस प्रकार प्रेरित कर सकती हैं। संचार अभियानों का उपयोग करने संबंधी सियरा के उदाहरण को बिहार और अधिक सामान्यीकृत रूप में भारत में लागू किया जा सकता है, जिसमें स्थानीय राजनीतिक नेताओं की भूमिका को ध्यान में रखा जाता है, ताकि महामारी और उससे बाद के समय में सार्वजनिक हित की समस्याओं का समाधान करने के लिए सार्वजनिक संस्थानों में पेशेवर मानदंडों और विश्वास को मजबूत किया जा सके। ये विचार ठंडे बस्ते में हैं क्योंकि राजनीति के बारे में बात करने के डर ने बाहरी साझेदारों को सुधारवादी नेताओं के साथ नीतिगत संवाद में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के सबक को शामिल करने से रोक दिया है। जब हमने अपने शोध को बिहार में नेताओं के साथ साझा किया, तो उनमें से एक ने टिप्पणी की कि उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने में स्थानीय स्तर पर निर्वाचित मुखिया (ग्राम प्रधान) की भूमिका के बारे में कभी नहीं सोचा था।
'सिस्टम' में समस्या
नवंबर-दिसंबर 2018 में, हमने बिहार की 254 ग्राम पंचायतों में नागरिकों, लोक स्वास्थ्यकर्मियों और पंचायत स्तर के राजनीतिक नेताओं का सर्वेक्षण किया। दूसरे चरण में, फरवरी-मार्च 2019 के दौरान, हमने उन ब्लॉक और जिला स्तर पर लोक स्वास्थ्यकर्मियों और उनके पर्यवेक्षकों के वरिष्ठ संवर्गों का सर्वेक्षण किया जिनमें ये 254 ग्राम पंचायतें स्थित हैं। इस प्रतिदर्श डिजाइन से हम उस प्रबंधन वातावरण की एक रूपरेखा बना पाए जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्यकर्मी उन्हें सौंपे गए कार्यों को निष्पादित करते हैं। स्वास्थ्य संवर्गों में, हमारे सर्वेक्षण के उत्तरदाताओं में से अधिकांश लोग चाहे वे संवर्ग के शीर्ष पर डॉक्टर और पर्यवेक्षी प्राधिकारी हों या संवर्ग में निचले स्तर पर लोक स्वास्थ्यकर्मी हों, सभी इस कथन से सहमत हैं - “मेरे प्रयासों के बावजूद, यह सिस्टम स्वास्थ्य परिणामों में सुधार नहीं होने देगा।” (आकृति 1)।
आकृति 1. स्वास्थ्य संवर्ग में उन उत्तरदाताओं का हिस्सा (% में) जो इस कथन से सहमत हैं - "मेरे प्रयासों के बावजूद, सिस्टम तंत्र स्वास्थ्य परिणामों में सुधार नहीं होने देगा।"
आकृति में प्रयुक्त अंग्रेजों शब्दों का अर्थ
CHW – सामुदायिक स्वास्थ्यकर्मी; Staff nurse – स्टाफ़ नर्स
ANM Sub Centre – सहायक नर्स मिडवाइफ (दाई) सब सेंटर; Doctors – चिकित्सक
ANM PHC - सहायक नर्स मिडवाइफ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र; Supervisor – सूपर्वाइज़र
चूंकि प्रबंधकों को संदेह है, या उनके पास इस बात के प्रमाण हैं कि उनके अधीनस्थ कर्मचारी अच्छी तरह से कार्य निष्पादन नहीं कर रहे हैं, इसलिए वे प्रबंधन बैठकों का उपयोग भय और अनुशासन बनाने के लिए करते हैं। हमारे प्रतिदर्श में लगभग 80% लोक स्वास्थ्यकर्मी और 86% उप-केंद्र एएनएम (सहायक नर्स दाइयां) बताते हैं कि प्रबंधन बैठकों (आकृति 2) में उन्हें "डांटा" जाता है। हमारे सर्वेक्षण के अधिकांश उत्तरदाताओं के उत्तर से स्वास्थ्य नौकरशाही के भीतर अविश्वास प्रकट होता है, जिसमें संवर्गों के शीर्ष पर पर्यवेक्षी प्राधिकार वाले डॉक्टर शामिल हैं, वे निम्नलिखित कथन से सहमत हैं - "मेरे काम के दौरान, मुझे हर छोटी चीज़ के लिए अनुमति लेनी पड़ती है।
आकृति 2. स्वास्थ्य संवर्गों में उत्तरदाताओं का प्रतिशत, जो कहते हैं कि प्रबंधन की बैठकें "खराब कार्य निष्पादन" पर केंद्रित होती हैं और इनमें "डांट" शामिल होती है
आकृति में प्रयुक्त अँग्रेजी शब्दों का अर्थ
Supervisor Scolds and Bad Performance Discussed: पर्यवेक्षक द्वारा डांटा जाना तथा खराब कार्य निष्पादन पर चर्चा
Scolding – डांटा जाना
सार्वजनिक वेतनसूची पर स्वास्थ्यकर्मियों का सबसे निचला संवर्ग, यानि एएनएम, जिनसे यह आशा की जाती है कि वे ग्राम स्तर के स्वास्थ्य उप-केंद्रों का प्रबंधन करें, वे व्यापक रूप से अनुपस्थित रहते हैं और परिवारों द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में नहीं पहचाने जाते हैं। हमारे सर्वेक्षण में अभिनव मॉड्यूल जन सेवा, निष्ठा और कार्य के प्रति लगाव को मापने के उद्देश्य से थे। इन मॉड्यूल के माध्यम से एकत्र किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि अन्य सभी ग्राम-स्तरीय उत्तरदाताओं और स्वास्थ्यकर्मियों के अन्य सभी संवर्गों की तुलना में ग्राम उप-केंद्र की एएनएम में जन सेवा और निष्ठा के लिए प्रेरणा का स्तर काफी कम है। परिवार बताते हैं कि वे अपने गांव में तैनात स्थायी एएनएम की बजाय अर्ध-स्वयंसेवक सामुदायिक स्वास्थ्यकर्मियों पर भरोसा करते हैं और इन्हें वह पारिश्रमिक भी समय पर नहीं मिलता जिसके वे हकदार हैं। नीति-निर्माता इस साक्ष्य को अपने पूर्ववर्तियों की सोच की पुष्टि के रूप में देख सकते हैं कि यदि संविदा कर्मियों को स्थायी कर दिया जाता है, जैसे कि एएनएम, तो वे कम प्रयास करने और खराब कार्य निष्पादन की मानसिकता को अपनाना शुरू कर देते हैं जो सार्वजनिक क्षेत्र को नुकसान पहुंचाता है।
सार्वजनिक क्षेत्र में सेवा प्रदान करने के लिए कमजोर प्रोत्साहन और कम जवाबदेही के दस्तावेजी साक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करते हुए और फिर उच्च-शक्ति वाले प्रोत्साहन पर लक्षित योजनाओं का मूल्यांकन करते हुए (सिंह एवं मास्टर्स 2017) शोध ने अब तक इन आशंकाओं को दर्शाया है, जैसे वेतन के कुछ भाग को कार्य-निष्पादन संकेतकों की शर्त पर निर्धारित करना। यहां तक कि जब प्रोत्साहन की शक्ति बढ़ाने को ‘कारगर’ दिखाया गया, तो उन निष्कर्षों के लेखक मानते हैं कि इस पैमाने पर इष्टतम प्रोत्साहन अनुबंधों को लागू करने से राज्य की क्षमता (मुरलीधरन एवं सुंदररमन 2011) पर बड़ी मांग हो सकती है। हमारा तर्क है कि इस समय उच्च-शक्ति वाले प्रोत्साहन के बजाय एक बिल्कुल अलग तरह के दृष्टिकोण को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए जिसमें आंतरिक प्रेरणा और पेशेवर मानदंडों की भूमिका पर आर्थिक सिद्धांत (दीक्षित 2002) के उपेक्षित विचारों का उपयोग किया जाए। लेकिन ऐसा करने के लिए राजनीति की भूमिका को ध्वस्त करने की आवश्यकता होगी क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र में मानदंड इसी के अनुसार निर्धारित किए जाते हैं (खेमानी 2019)।
स्थानीय राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की शक्ति का उपयोग करके विश्वास का निर्माण करना जबकि आरंभ से ही इसका अभाव है
नीति-संगत सवाल यह है कि भरोसेमंद सार्वजनिक संस्थानों का निर्माण कैसे किया जाए जबकि आरंभ से ही इसका अभाव है। इसका उत्तर यह है कि इस महामारी द्वारा निर्मित केंद्र बिंदु ने अभी और आगे भी इस तरह के विश्वास का निर्माण करने का अवसर प्रदान किया है। हाल ही के एक नोट में, मैंने गेम थ्योरी1 का उपयोग करके यह तर्क दिया है कि इस महामारी ने विकासशील देशों में सरकारों को सार्वजनिक स्वास्थ्य (खेमानी 2020) के क्षेत्र में अप्रत्याशित तर्कसंगतता के साथ सामर्थ्यवान किया है। नागरिकों की दृष्टि में लोक स्वास्थ्यकर्मियों का महत्व बढ़ा है। अब अवसर है कि स्थानीय राजनीतिक संस्थानों को लक्ष्य बना कर, रणनीतिक संचार का उपयोग करते हुए विश्वास का निर्माण किया जाए ताकि सार्वजनिक क्षेत्र में लोक स्वास्थ्यकर्मियों के साथ लोगों के व्यवहार के बारे में विश्वास या मानदंडों को बदला जा सके।
जब सार्वजनिक क्षेत्र में मानदंडों की बात आती है तो स्थानीय राजनीतिक संस्थान इन मानदंडों को बदलने के लिए केंद्र बिंदु प्रदान करते हैं, क्योंकि राजनीति वह स्थान है जिसमें नेता और नागरिक उन सार्वजनिक नीतियों के बारे में एक-दूसरे के साथ संवाद करते हैं जिन्हें वे एक समाज के रूप में आगे बढ़ाना चाहते हैं। जब राजनीतिक भागीदारी लाभ कमाने के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें राजनीतिक समर्थन खरीदने के लिए नेताओं द्वारा संरक्षक की नौकरी या अन्य लक्षित लाभों की पेशकश की जाती है, तो अब तक विकासशील देशों में किए गए शोधों द्वारा उजागर तथ्यों के अनुरूप ही यह स्वाभाविक है कि सार्वजनिक कर्मचारियों में प्रोत्साहन और पेशेवर मानदंडों की कमी होगी। यह सुनिश्चित करने के लिए पेशेवर मानदंड़ों पर आधारित एक नए अनुबंध के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्यकर्मी उन पर सौंपे गए विश्वास को अर्जित करेंगे, जरूरी यह भी है कि स्वास्थ्य कर्मचारी यह विश्वास करें कि यदि वे कार्य निष्पादन में असफल रहेंगे तो उन्हें अपने साथियों से सामाजिक निंदा का सामना करना पड़ेगा। उनका यह विश्वास करना भी ज़रूरी है कि लाभ कमाने वाले राजनीतिक नेता उनके साथियों को भ्रष्ट नहीं कर सकते और ये राजनीतिक नेता स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने हेतु उनके संवर्ग को समग्र रूप से सहयोग देने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। यदि स्थानीय राजनीतिक नेता, जिनके पास सार्वजनिक संस्थानों पर अनौपचारिक अधिकार होता है, कुछ श्रमिकों को उनके संरक्षक के रूप में बचाते रहें, और जिन्हें वे एक खतरे के रूप में देखते हैं उन्हें बाधा पहुंचाते रहें तो विश्वासों का पेशेवर मानदंडों में बदलने का कोई औचित्य नहीं है।
हमारा शोध लोक स्वास्थ्यकर्मियों के साथ अनुबंध में मौलिक परिवर्तन की सिफारिश करते हुए समाप्त होता है, परंतु इस अनुबंध को कारगर बनाने के लिए रणनीतिक संचार अभियानों को इसकी पूरक की भूमिका निभानी होगी। रणनीतिक संचार अभियानों को डिजाइन करने के लिए मीडिया एजेंटों द्वारा प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के संदर्भ-विशिष्ट विवरणों और स्वास्थ्यकर्मियों के साथ प्रबंधन बैठकों की संरचना का उपयोग किया जा सकता है। ऐसा संचार एक 'आसान' विकल्प नहीं है। अनौपचारिक कारक, जैसे कि वैधता और भरोसा, वे विश्वास हैं जिन्हें लोग इस बात के लिए धारण करते हैं कि अन्य लोग कैसा व्यवहार कर रहे हैं, इन्हें सेवा प्रदान करने के किसी एक क्षेत्र से परे जाते हुए, आर्थिक सिद्धांत में आर्थिक विकास के मूल के रूप में फिर से खोजा जा रहा है। हम वर्ल्ड बैंक के विकास शोध समूह (डेवलपमेंट रिसर्च ग्रुप) में भारत पर नीति निर्धारकों के साथ काम करने, परीक्षण करने और मूल्यांकन करने के लिए तैयार हैं कि कैसे संस्थानों को मजबूत किया जा सकता है, जिसका आरंभ हमारे द्वारा बिहार के संदर्भ में उजागर किए गए विवरणों का उपयोग करते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य के साथ किया जा सकता है।
इन नीतिगत विचारों को प्रस्तावित करने के लिए हम जिस वर्णनात्मक शोध का उपयोग कर रहे हैं, वह नीतिगत संवाद की दिशा तय करने के प्रमुख मानक के रूप में प्रयोग किए जा रहे यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षणों और यहां तक कि सहसंबंध स्थापित करने से भी दूर हैं। नीति निर्माण में प्रयोग करने के लिए तैयार नीतिविदों के साथ सहयोग स्थापित करना कठिन है और इस मामले में तो यह और भी कठिन हो जाता है क्योंकि इसमें नौकरशाही प्रबंधन संस्कृति और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा को लक्षित करने की जटिलता और संभावित संवेदनशीलता भी शामिल है। हमारे शोध में राजनीतिक आर्थिक सिद्धांत को गंभीरता से लिया गया है जिसके अंतर्गत इस सिद्धांत को सुझाने वाले महत्वपूर्ण चरों को मापने हेतु बड़ी संख्या में सर्वेक्षणों और नए मॉड्यूल का उपयोग किया गया है (जैसे आंतरिक प्रेरणा एवं सहकर्मी मानदंड, और स्थानीय राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की शक्तियां)। यह सर्वेक्षण वास्तविक नीतिगत प्रचलन तथा आर्थिक सिद्धांत से अंतर्दृष्टि के बीच विरोधाभास का साक्ष्य प्रदान करता है, और भारत में नीति निर्माताओं को वर्तमान संकट को एक अवसर के रूप में उपयोग करके स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने के लिए एक अलग दृष्टिकोण अपनाने हेतु विचार प्रदान करता है। ऐसा करके, भारत इस मोर्चे पर दुनिया का नेतृत्व कर सकता है।
नोट्स:
- गेम थ्योरी, दो या दो से अधिक प्रतिभागियों के बीच निर्धारित नियमों और परिणामों वाली रणनीतिक सहभागिता को मॉडलिंग करने की प्रक्रिया है। गेम थ्योरी कई विषयों में उपयोग किया जाता है, परंतु अर्थशास्त्र के अध्ययनों में इसका एक उपकरण के रूप में सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।
लेखक परिचय: स्तुति खेमानी वर्ल्ड बैंक के विकास अनुसंधान समूह (डेवलपमेंट रिसर्च ग्रूप) में एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं।
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