हम अक्सर देखते हैं कि नौकरशाहों की तनख्वाह का ढांचा बहुत बंधा हुआ होता है| साथ ही, उन्हें मिलने वाली अन्य आर्थिक सुविधाएं और भत्ते न सिर्फ बेहद कम होते हैं, बल्कि उनमें प्रदर्शन के आधार पर कोई खास फर्क नहीं होता| इस लेख के लिए हमने भारत की 2010-2020 की अचल संपत्ति रिटर्न (आईपीआर) रिपोर्ट को आधार बनाया है, जिसमें नौकरशाहों ने खुद अपनी संपत्ति की जानकारी दी है| यह रिपोर्ट बताती है कि जब अफ़सरों को किसी ‘अहम’ मंत्रालय में पुनर्नियुक्ति कर भेजा जाता है, तो उन्हें निजी फ़ायदों के रूप में अच्छी सुविधाएं मिलती हैं| इन अफ़सरों की अचल संपत्तियों की संख्या और मूल्य दोनों बढ़ते हैं जिसका सीधा मतलब है कि उन्हें अपने काम के चलते निजी तौर पर कहीं ज़्यादा फ़ायदे और आर्थिक सुविधाएं मिलती हैं|
नौकरशाहों को आमतौर पर काफ़ी कम अतिरिक्त सुविधाएं और भत्ते मिलते हैं| सैद्धांतिक रूप से यह बेहद कारगर तरीका है, क्योंकि नौकरशाही के लक्ष्य बहु-आयामी होते हैं और अफ़सरों को कई तरह के जटिल काम करने होते हैं,जिनकी वजह से इन अधिकारियों की परफ़ॉर्मेंस का आकलन करना और उसके मुताबिक प्रोत्साहन देना बहुत मुश्किल हो जाता है|
इसलिए,नौकरशाहों को निजी तौर पर मिलने वाले आर्थिक फ़ायदों से नौकरशाही की सुविधाओं और भत्तों का महत्व कम हो सकता है| नौकरशाहों को मिलने वाले निजी फ़ायदों का आकलन करना मुश्किल है,क्योंकि नौकरशाहों की संपत्ति से जुड़ी जानकारी शायद ही कभी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होती है|
हाल ही में किए गए एक अध्ययन में, हमने भारत को मद्देनज़र रखते हुए इस चीज़ का आकलन किया कि प्रभावशाली पुनर्नियुक्ति मिलने के बाद नौकरशाहों को आर्थिक तौर पर कितना फ़ायदा हुआ|
भारतीय प्रशासनिक सेवा: अफ़सरों के ओहदे और तबादले
भारतीय प्रशासनिक सेवा में नौकरशाहों का करियर आजीवन चलता है | वे नागरिक प्रशासन और नीति निर्माण में भी शामिल होते हैं और उनकी नियुक्ति सरकार में सबसे अहम ओहदों पर होती है| अफ़सरों को उनकी वरिष्ठता और अनुभव के आधार पर, उनके वेतनमान के मुताबिक तनख्वाह दी जाती है|
मौजूदा आईएएस अफ़सरों के लिए कोई मंत्रालय तब ‘अहम’ होता है, जब वहां उन्हें ज़रूरी नीतियां बनाने के फ़ैसले लेने का मौका मिले| आबकारी और बिक्री कर, वित्त, खाद्य और नागरिक आपूर्ति, स्वास्थ्य, गृह, उद्योग, सिंचाई, लोक निर्माण, शहरी विकास मंत्रालयों और विभागों को अहम माना जाता है| अन्य अहम विभागों में ज़िला प्रशासन या केंद्र सरकार की नियुक्तियों को गिना जाता है| इन विभागों में नौकरशाहों को अच्छा निजी मुनाफ़ा हो सकता है|
करियर के दौरान आईएस अफ़सरों का बार-बार तबादला होता है, जिनमें से ज़्यादातर तबादलों में किसी जगह पर कम से कम दो साल के लिए नियुक्ति होती है| हालांकि, एक साल के अंदर तबादला होना बहुत ही आम बात है| इस वजह से किसी नियुक्ति का औसत समय लगभग 16 महीने है| हालांकि, राज्य स्तर के नेता आईएएस अधिकारियों को न तो नियुक्त कर सकते हैं और न ही उन्हें नियुक्ति से हटा सकते हैं|
आईएएस अफ़सरों की अचल संपत्ति
हमने 2012 से 2020 तक सभी राज्यों में 5,100 से ज़्यादा आईएएस अफ़सरों की 31,000 से ज़्यादा अचल संपत्ति रिटर्न (आईपीआर) की रिपोर्ट का हिसाब लगाया| इनमें उनकी सभी अचल संपत्ति के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है| सभी अचल संपत्तियों की औसत संख्या 2.4 है| इन अचल संपत्तियों का माध्य (मीन) रु.1,15,19,000 (लगभग 2,30,380 यूएस डॉलर)और माध्यमान (मीडियन) रु.52,00,000(लगभग 1,04,000 यूएस डॉलर) है| इसकी तुलना में, 2015 में भारत की प्रति वयस्क व्यक्ति की औसत संपत्ति रु. 5,44,000(लगभग 7,140 यूएस डॉलर) थी|
हमने इस डेटा को उस दौरान की आईएएस अफ़सरों की कार्यकारी रिकॉर्ड शीट के साथ मिलाया, जिसमें उनके तबादलों और जनसांख्यिकीय से जुड़ी जानकारी को भी शामिल किया गया है. इस जानकारी को मुख्य तौर पर दो हिस्सों में बाँटा गया है. पहले हिस्से में उस साल को रखा गया है जिस दौरान सबसे पहली बार किसी अफ़सर की नियुक्ति किसी अहम मंत्रालय में की गई और दूसरे हिस्से में उस नियुक्ति के बाद वाले सालों को रखा गया है| इस तरह, हमने इस बात पर गौर किया कि अहम मंत्रालय में तबादला होने के बाद क्या बदलाव हुए|
अहम मंत्रालयों में पुनर्नियुक्ति के बाद नौकरशाहों की संपत्ति में होने वाले बदलाव
नौकरशाहों के तबादलों से उनकी संपत्ति पर क्या असर पड़ा, इसका आकलन करने के लिए, हमने ऐसे अफ़सरों की अचल संपत्ति में हुए बदलाव की तुलना की जिन्हें किसी तबादले से पहले और बाद में किसी अहम मंत्रालय में पुनर्नियुक्त किया गया और जिनकी पुनर्नियुक्ति किसी अहम मंत्रालय में नहीं की गई|अहम मंत्रालयों में तबादला होने का बाद अफ़सरों की अचल संपत्तियों की कीमत में 53% और संख्या में 19% की बढ़ोतरी हुई|
हमने इस बात का भी आकलन किया कि किसी खास समयावधि के दौरान अहम मंत्रालयों में पुनर्नियुक्ति होने से अफ़सरों की संपत्ति पर क्या असर पड़ा| तबादले वाले साल में अफ़सरों की अचल संपत्ति की संख्या औसतन 12% अधिक होती है,जो छह सालों के बाद बढ़कर 24% हो जाती है|
हमने पाया कि तबादले वाले साल के दौरान अचल संपत्तियों की कीमत 21% तक बढ़ जाती है| यह बदलाव बढ़ते रहने वाला है और पुनर्नियुक्ति के छह साल बाद दोबारा आकलन करने पर इन संपत्तियों की कीमत औसतन 163% तक बढ़ी| साथ ही, इन नतीजों से पता चलाता है कि अहम मंत्रालयों में नियुक्ति होने से अफ़सरों की अचल संपत्ति की कीमतों में सालाना 10% की बढ़ोतरी और इनकी संख्या में 4.4% की बढ़ोतरी हुई| अगर अफ़सरों की नियुक्ति आम तरीके से होती तो शायद उनकी संपत्ति इस तरह नहीं बढ़ती|
पुनर्नियुक्ति होने से नौकरशाहों की संपत्ति पर क्या असर पड़ता है
अध्ययन के दौरान हमें ऐसे कई तरीकों की जानकारी मिली जिनका असर मुख्य नतीजों पर पड़ सकता है| अहम ओहदों पर काम कर रहे अफ़सर रिश्वत मांग सकते हैं या रिश्वत ले सकते हैं, क्योंकि हो सकता है कि उनके काम की वजह से लोगों की ज़िन्दगी और आर्थिक गतिविधियों पर बड़ा असर पड़ रहा हो |
हमने अलग-अलग मंत्रालयों और अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग असर की विविधता का विश्लेषण किया| हमने भ्रष्टाचार को मद्देनज़र रखकर उन मंत्रालयों पर ध्यान केंद्रित किया जिन्हें ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने सबसे ज़्यादा भ्रष्टाचार प्रभावित के तौर पर मार्क किया है| हमें जानकारी मिली कि भ्रष्टाचार से ग्रस्त अहम मंत्रालयों में पुनर्नियुक्ति होना, अचल संपत्तियों में बढ़ोतरी की मुख्य वजह है| हमने राज्य स्तर पर जाँच करके इस बात की विविधता का विश्लेषण भी किया कि क्या भ्रष्टाचार से सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्यों में तबादले की वजह से संपत्ति में ज़्यादा बढ़ोतरी हुई| हमने देखा कि भ्रष्टाचार से सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्यों में अचल संपत्तियों की कीमतों पर नौकरशाहों के तबादले का असर, अन्य राज्यों की तुलना में 3.2 गुना ज़्यादा है| इसके अलावा, हमने यह भी देखा कि जिन अफ़सरों की पुनर्नियुक्ति दोबारा से भ्रष्टाचार से प्रभावित मंत्रालयों में हुई गृह राज्य में उनकी संपत्ति में बढ़ोतरी हुई| ऐसा शायद इसलिए हुआ,क्योंकि उन्हें स्थानीय माहौल और भाषा की जानकारी थी, जिसका फ़ायदा उन्होंने निजी लाभ के लिए उठाया|
इस निष्कर्ष पर असर डालने वाली किसी भी अन्य वजह को हमने पूरी तरह से छोड़ दिया है| उदाहरण के लिए, हमारे पास इस बात की जानकारी है कि रियल एस्टेट में खरीदारी करने का फ़ैसला, अपने लिए एक घर खरीदने जैसा आम फ़ैसला नहीं है| हमें इस तर्क से जुड़ी यह जानकारी भी मिली कि पुनर्नियुक्ति से पहले जिन अफ़सरों के पास कोई अचल संपत्ति नहीं थी, संपत्तियों की बढ़ोतरी में उनका कोई योगदान नहीं है| हम इस संभावना से भी
निष्कर्ष
भारत में, हमने नौकरशाहों को निजी लाभ के तौर पर मिलने वाले कई बड़े आर्थिक फ़ायदों की जाँच की| हमारी जाँच के नतीजों से पता चलता है कि नौकरशाही को पुनर्नियुक्ति की वजह से बहुत ज़्यादा निजी फ़ायदे मिलते हैं| हमारा मानना है कि अफ़सरों की निजी तौर पर ज़्यादा फ़ायदे और आर्थिक सुविधाएं कमाने की आदत की वजह से पु्र्नियुक्तियों से मिलने वाले फ़ायदों में कोई बदलाव नहीं होता|
आमतौर पर यह माना जाता है कि नौकरशाही को कम फ़ायदे और आर्थिक सुविधाएं मिलती हैं, यह अध्ययन इस तथ्य के बारे में और बारीकी से नई जानकारी देता है| नौकरशाहों के निजी फ़ायदे लेने की आदत के बारे में जानने के लिए, हमारे अध्ययन में एक और तरीके के बारे में पता चला है, जिसके तहत,तबादले से पहले और बाद में अफ़सरों की संपत्ति की तुलना की जा सकती है|
अनुवाद अनिमेष मुखर्जी द्वारा किया गया है |
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लेखक परिचय: अमित चौधरी पॉलीगॉन टेक्नोलॉजी में डेफी (विकेंद्रीकृत वित्त )अनुसंधान के प्रमुख हैं। सांग युआन वारविक यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र में एक पीएच.डी.उम्मीदवार हैं।
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