इस लेख में वर्ष 2016 में बिहार में शराब की बिक्री और खपत पर लगाए गए पूर्ण प्रतिबंध के कारण महिलाओं के प्रति उनके जीवन साथी द्वारा होने वाली हिंसा की घटनाओं पर पड़े प्रभाव की जांच की गई है। एनएफएचएस आंकड़ों का उपयोग करते हुए पाया गया कि इस प्रतिबंध के बाद बिहार में महिलाओं का कहना था कि उनके पतियों के शराब पीने की संभावना पहले से कम थी और महिलाओं के घरेलू हिंसा का सामना किए जाने की संभावना भी कम थी। इस लेख में महिला सशक्तिकरण को बढ़ाने और उन्हें दुर्व्यवहार से बचाने में स्वयं-सहायता समूहों की पूरक भूमिका पर भी प्रकाश डाला गया है।
भारत में लगभग 35% महिलाओं को अपने जीवनकाल में किसी न किसी रूप में जीवन साथी से हिंसा (इंटिमेट पार्टनर वायलेंस, आईपीवी) का सामना करना पड़ता है, जबकि इसका वैश्विक औसत 27% है (विश्व स्वास्थ्य संगठन, 2018)। आईपीवी का इतना अधिक प्रसार अक्सर कई कारणों से होता है- जैसे महिलाओं की कम उम्र में शादी (रॉयचौधरी और धमीजा 2021), बेटे को प्राथमिकता (प्रिया एवं अन्य 2014), महिला शिक्षा की कम दर (एंजेलुची और हीथ 2020), पति या पत्नी के प्रति दुर्व्यवहार का पारिवारिक इतिहास (बेन्सले एवं अन्य 2003), पति की बेरोज़गारी (भलोत्रा एवं अन्य 2021), उम्मीद से कम दहेज (बलोच और राव 2002) आदि। आईपीवी की उच्च दरों के महिलाओं पर तत्कालिक और दीर्घकालिक दोनों परिणाम होते हैं, जिनमें से कुछ हैं- खराब स्वास्थ्य, अनपेक्षित गर्भधारण और प्रेरित गर्भपात (अहिंकोरा 2021), अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियाँ (काराकर्ट एवं अन्य 2014) और चिंता संबंधी विकार (एल्सबर्ग एवं अन्य 2008), कम श्रम बल भागीदारी (चक्रवर्ती एवं अन्य 2018), और बच्चों के जीवित रहने की कम दर (कोएनिग एवं अन्य 2010)।
2030 के सतत विकास लक्ष्यों के एक भाग के रूप में, दुनिया भर की सरकारें महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा को खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हालाँकि उच्च आईपीवी के लिए ज़िम्मेदार पारंपरिक लैंगिक मानदंडों जैसे अंतर्निहित कारकों का समाधान करना इतना आसान नहीं होता है, लेकिन जीवन साथी द्वारा हिंसा को कम करने के लिए विभिन्न सुरक्षा उपाय अपनाए गए हैं। इनमें महिला पुलिस स्टेशनों की स्थापना (एमरल एवं अन्य 2021), महिलाओं को छोटे नकद हस्तांतरण (बोबोनिस एवं अन्य 2013), वन-स्टॉप सेंटर, हेल्पलाइन नंबर आदि शामिल हैं। इनमें से अधिकांश उपाय महिलाओं को ध्यान में रखकर लागू किए गए हैं।
घरेलू हिंसा को कम करने की एक प्रभावी रणनीति में जीवन साथी के शराब के सेवन पर नियंत्रण लाना शामिल है। शोध-कार्यों में निरंतर रूप से जीवन साथी के शराब के उपयोग और आईपीवी (लियोनार्ड 2005, लुका एवं अन्य 2015) के बीच आपसी संबंध पाया गया है। यह तर्क दिया गया है कि शराब पीने से विवेक खो जाता है, संकोच कम हो सकता है और आक्रामकता बढ़ सकती है, जिससे व्यक्ति के हिंसक व्यवहार किए जाने की संभावना बढ़ जाती है (कुक एंड डुरांस 2013)।
फिर भी, उपलब्ध साहित्य में आईपीवी पर प्रतिबंध के अनुमान अन्य लिंग-विशिष्ट नीतियों के साथ प्रतिबंध का संयोग या महिलाओं के लिए असुरक्षित क्षेत्रों में चुनिंदा प्रतिबंध जैसे जटिल भ्रामक कारकों के कारण छोड़े गए परिवर्तनीय पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। हम अपने अध्ययन (देबनाथ एवं अन्य 2023) में, आईपीवी पर बिहार राज्य में शराब पर लगाए गए प्रतिबंध के प्रभाव को समझने के लिए शराब की प्रतिबंध-पूर्व खपत में भिन्नता का फायदा उठाकर इन चिंताओं के समाधान का प्रयास करते हैं।
बिहार में शराबबंदी का असर
बिहार में राज्य सरकार ने अप्रैल 2016 में शराब की बिक्री, खरीद, खपत और निर्माण पर पूर्ण राज्यव्यापी प्रतिबंध1 लागू किया। केंद्र और राज्य सरकारों के संयुक्त वित्त और राजस्व लेखा के विभिन्न वर्षों के डेटा का उपयोग करते हुए, हमने आकृति-1 में बिहार और उसके पड़ोसी राज्यों में विभिन्न प्रकार की शराब की बिक्री से उत्पन्न राजस्व को दर्शाया है। जैसा कि अपेक्षित था, हमने वर्ष 2016 के बाद से बिहार के उत्पाद-शुल्क राजस्व में भारी गिरावट देखी, जो यह दर्शाता है कि प्रतिबंध वास्तव में राज्य भर में शराब की कानूनी खपत और बिक्री को कम करने में प्रभावी था। (चौधरी एवं अन्य 2023)।
आकृति-1. राज्यों में शराब से वर्ष-वार प्राप्त उत्पाद-शुल्क राजस्व
टिप्पणियाँ: i) बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड के शराब से प्राप्त कर राजस्व को प्राथमिक अक्ष पर दर्शाया गया है और उत्तर प्रदेश का कर राजस्व द्वितीयक अक्ष पर दर्शाया गया है। ii) खड़ी रेखा बिहार में शराबबंदी के वर्ष को दर्शाती है।
सैद्धांतिक रूप से, आईपीवी पर शराब प्रतिबंध का प्रभाव स्पष्ट नहीं है। हालाँकि अध्ययनों में कम शराब की खपत और बेहतर वैवाहिक संबंधों के साथ-साथ कम कलह (लुका एवं अन्य 2015) के बीच एक मज़बूत संबंध पाया गया है, लेकिन यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि शराब पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने से महिलाओं के लिए नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं। प्रतिबंध के बाद, शराब न मिलने से हताश पति अंततः पत्नियों पर हमला कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, अयंगर (2009) ने पाया कि घरेलू हिंसा की रिपोर्ट के लिए पुलिस की निष्क्रियता को संबोधित करने के लिए गिरफ्तारी को अनिवार्य करने वाले कानूनों के कारण आईपीवी में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।
राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के कई सर्वेक्षणों और डिफरेन्स-इन-डिफरेन्स रणनीति2 का उपयोग करते हुए, हमने पाया कि शराब पर प्रतिबंध लागू होने के बाद बिहार की महिलाओं ने अन्य राज्यों की महिलाओं की तुलना में अपने पतियों का शराब का सेवन कम होने के बारे में सूचित किया। इसके अलावा हमने यह भी पाया कि प्रतिबंध लागू होने के बाद बिहार में रहने वाली महिलाओं द्वारा घरेलू हिंसा (शारीरिक, यौन या भावनात्मक) का सामना करने की संभावना कम थी। हम इसके समानांतर रुझानों की भी जांच करते हैं (आकृति-2 देखें)।
आकृति-2. बार-बार शराब पीने (बाएं) और गम्भीर शारीरिक हिंसा (दाएं) के समानांतर रुझान
टिप्पणियाँ: i) y-अक्ष एनएफएचएस डेटासेट का उपयोग करके, राज्य और राउंड नियत प्रभावों को नियंत्रित करने के बाद, पति की शराब की खपत (बायाँ पैनल) और महिला द्वारा सामना की गई गम्भीर शारीरिक हिंसा (दायाँ पैनल) में अस्पष्ट भिन्नता को दर्शाता है। ii) जिन राज्यों में पहले या वर्तमान में शराब पर अस्थायी या जिला-वार प्रतिबंध था, उन्हें हमारे विश्लेषण में शामिल नहीं किया गया है।
दीक्षित एवं अन्य (2023) घरेलू हिंसा पर इस प्रतिबंध के नकारात्मक प्रभाव का पता लगाने के लिए एक समान अनुभवजन्य रणनीति अपनाते हैं। इस प्रभाव को जानते समय, इसमें एक बड़ी बाधा ठीक उसी अवधि में बिहार सरकार द्वारा अन्य महिला समर्थक नीतियों को अपनाया जाना है, जो आईपीवी की दरों में गिरावट का कारण हो सकती हैं। हम इस समस्या का समाधान, प्रतिबंध लागू होने से पहले बिहार में शराब की खपत में भिन्नता को समझते हुए करते हैं।
हम एनएफएचएस के भू-स्थानिक डेटा का उपयोग करते हुए, बिहार में अलग-अलग स्तर (उप-जिला या ब्लॉक)3 पर शराब की खपत की प्रतिबंध-पूर्व तीव्रता की गणना करते हैं (आकृति-3 देखें)। हम कल्पना करते हैं कि यदि प्रतिबंध प्रभावी था, तो इससे बिहार के उन क्षेत्रों में शराब की खपत में काफी कमी आनी चाहिए थी, जहां प्रतिबंध से पहले शराब की खपत अपेक्षाकृत अधिक थी। बिहार में राज्य की अन्य महिला समर्थक नीतियों- जिनमें 2015 की महिला सशक्तिकरण नीति, 2007 की मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना और 2008 की मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना शामिल हैं- के कारण शराब पर प्रतिबंध से पहले, शराब की खपत के अनुसार बदलाव होने की संभावना कम है।
आकृति-3. बिहार के उप-जिलों में एनएफएचएस क्लस्टर
शराब पर प्रतिबंध से पहले, उच्च-अल्कोहल खपत वाले ब्लॉकों में आईपीवी की दरें कम-अल्कोहल खपत वाले ब्लॉकों की तुलना में लगभग 37-54% अधिक थीं। हमारे नतीजे दर्शाते हैं कि प्रतिबंध-पूर्व शराब की अधिक खपत वाले ब्लॉक में रहने वाली किसी महिला द्वारा प्रतिबंध के बाद क्रमशः शारीरिक (गम्भीर और कम गम्भीर दोनों) और भावनात्मक हिंसा का सामना करने की संभावना 4.2-12% और 7.4% कम थी। उसके द्वारा जीवन साथी की ओर से किसी भी तरह के प्रतिबंध का सामना करने की संभावना 6.3 प्रतिशत कम थी, जैसे कि उसे परिवार या दोस्तों से मिलने की अनुमति न देना, पैसे के मामले में उस पर भरोसा न करना, हर समय उसके ठिकाने के बारे में जानना आदि।
स्वयं-सहायता समूहों के माध्यम से शराबबंदी की संपूरकता
वर्ष 2006 में, बिहार सरकार ने हाशिए पर रहने वाली महिलाओं को लघु-ऋण और बचत जुटाने के और प्रोत्साहित करने के लिए उनके स्वयं-सहायता समूह (एसएचजी) गठित करने के लिए बिहार ग्रामीण आजीविका परियोजना (बीआरएलपी), जिसे ‘जीविका’ के नाम से जाना जाता है, शुरूआत की। इस प्रमुख परियोजना के तहत वर्ष 2006 और 2022 के बीच लगभग 14 लाख एसएचजी समूहों का गठन किया गया। एसएचजी के गठन का उद्देश्य महिलाओं की वित्तीय स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करना है, और हम उम्मीद करते हैं कि संसाधनों तक अधिक पहुंच वाली महिलाएं, उन के प्रति दुर्व्यवहार का कम सामना करेंगी। प्रत्येक एसएचजी समूह के गठन की तारीख की जानकारी का उपयोग करते हुए हम शराब पर प्रतिबंध से पहले बिहार के ब्लॉकों में एसएचजी समूहों की कुल संख्या की गणना करते हैं। हमने पाया कि आईपीवी की घटनाओं पर शराब पर प्रतिबंध का प्रभाव, कम एसएचजी समूहों वाले ब्लॉकों में रहने वाली महिलाओं की तुलना में अधिक एसएचजी समूहों वाले ब्लॉकों में रहने वाली महिलाओं के संदर्भ में सांख्यिकीय रूप से काफी अधिक था। इस बारे में साक्ष्य, आईपीवी दरों को कम करने के लिए वित्तीय और अन्य सहायता की पेशकश में सामाजिक नेटवर्किंग समूहों के महत्व पर ज़ोर देते हैं।
नीति का क्रियान्वयन
हालाँकि शराब प्रतिबंध से शराब संबंधी हिंसा को कम करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद मिली, लेकिन राज्य में बढ़ती तस्करी और अवैध शराब, सरकार के राजस्व की हानि, मादक द्रव्यों के सेवन के अन्य रूपों में वृद्धि और प्रतिबंध को लागू करने के लिए पुलिस संसाधन को लगाया जाना- जिससे राज्य में समग्र अपराध में वृद्धि हुई, आदि के लिए अक्सर इसकी आलोचना की गई है (अग्रवाल 2017, डार और सहाय 2018, झा 2022)। कुछ मीडिया लेखों में राज्य में ज़हरीली शराब के सेवन से होने वाली मौतों में वृद्धि को भी कवर किया गया (सिंह 2023)। अतः राजकोष को होने वाले नुकसान तथा शराब पर प्रतिबंध के कल्याणकारी निहितार्थों के बीच ‘ट्रेड-ऑफ’ का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करने की आवश्यकता है, ताकि इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके कि क्या ऐसी नीति को अन्य राज्यों में भी लागू किया जा सकता है या नहीं।
इन नीतिगत सीमाओं के बावजूद, हम अपने अध्ययन में विशेष रूप से महिलाओं के प्रति लैंगिक हिंसा को कम करने के संदर्भ में शराब पर प्रतिबंध के प्रभाव को उजागर करने का प्रयास करते हैं। हम ‘जीविका’ जैसी अन्य सरकारी नीतियों के महत्व पर प्रकाश डालते हैं, जिनका उद्देश्य आईपीवी पर प्रतिबंध के समग्र प्रभाव को बढ़ाने में महिलाओं को सशक्त बनाना है। एसएचजी समूह महिलाओं को संगठित करने और आजीविका और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन वित्तीय और सामुदायिक संसाधनों का न होना इस ओर इशारा कर सकता है कि महिलाएं अपमानजनक रिश्तों में क्यों बंधी रहती हैं। परिणामस्वरूप, महिलाओं की वित्तीय स्वायत्तता में सुधार के लिए डिज़ाइन की गई नीतियों को लागू करने से उनके साथ होने वाले बुरे बर्ताव को प्रभावी ढंग से समाप्त किया जा सकता है।
टिप्पणियाँ:
- गुजरात, मिज़ोरम, नागालैंड, लक्षद्वीप, मणिपुर और केरल जैसे कई अन्य राज्यों ने पहले ही शराब पर अस्थायी या जिलेवार प्रतिबंध लगाया है। हम अपने विश्लेषण में इन पर विचार नहीं करते हैं।
- समान समूहों में समय के साथ परिणामों के विकास (इस मामले में, आईपीवी) की तुलना करने के लिए ‘डिफरेन्स-इन-डिफरेन्स’ रणनीति का उपयोग किया जाता है, जहां कोई किसी घटना से प्रभावित था (इस मामले में, बिहार में शराब पर प्रतिबंध), जबकि कोई अन्य प्रभावित नहीं था।
- क्योंकि बिहार में केवल 38 जिले हैं, इसलिए जिला स्तर पर अध्ययन करने के लिए पर्याप्त विविधता उपलब्ध नहीं है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : सिसिर देबनाथ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में मानविकी और सामाजिक विज्ञान के सहायक प्रोफेसर हैं। सौरभ पॉल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। कोमल सरीन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में अर्थशास्त्र में शोध कर रही हैं।
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